Thursday 10 November 2011


2015 तक खत्म हो जाएगी आर्कटिक की बर्फ
लंदन, एजेंसी : आर्कटिक सागर पर सफेद बर्फ की मोटी चादर जल्द ही अतीत का हिस्सा बन सकती है। ब्रिटेन के एक शीर्ष महासागर विशेषज्ञ ने दावा किया है कि 2015 के ग्रीष्म तक वहां से बर्फ खत्म हो जाएगी। कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के प्रो. पीटर वधाम्स के मुताबिक, आर्कटिक सागर की बर्फ इतनी तेजी से सिकुड़ रही है कि अगले चार साल में ही यह समाप्त हो सकती है। इससे ध्रुवीय भालू जैसे जानवरों के लिए प्राकृतिक आवास की समस्या खड़ी हो जाएगी। उत्तरी रूस, कनाडा और ग्रीनलैंड के बीच में पसरी यह बर्फ मौसम के साथ घटती बढ़ती रहती है। फिलहाल यह 40 लाख वर्ग किमी के आकार में सिमट गई है। जलवायु परिवर्तन पर अंतरराष्ट्रीय समिति के ताजातरीन अनुमानों सहित ज्यादातर मॉडलों में हाल के दिनों में बर्फ के सिकुड़ने के हिसाब से इसके समाप्त होने की गणना की गई है। हालांकि वधाम्स का कहना है कि ऐसे अनुमान जलवायु परिवर्तन के तेजी से पड़ने वाले असर के सटीक आकलन में नाकाम रहते हैं। उनका कहना है कि उनका मॉडल चरम है लेकिन सर्वश्रेष्ठ है। यह दिखाता है कि बर्फ के घनत्व में गिरावट इतनी तेजी से हो रही है कि बहुत जल्द ही यह शून्य के स्तर पर पहंुच जाएगा। 2015 का अनुमान बेहद गंभीर अनुमान है। रूस, कनाडा और ग्रीनलैंड के बीच की बर्फ पिघल रही है। इन दिनों यह अपने न्यूनतम स्तर चार मिलियन स्क्वायर किमी पर पहुंच चुकी है। पर्यावरण बदलाव पर अंतर सरकारी पैनल (आइपीसीसी) बर्फ के स्तर में आ रही कमी पर नजर रखे हुए है। अमेरिकी शोधकर्ता डॉ. विस्ला मास्लोवस्की की रिपोर्ट के मद्देनजर वधाम्स ने कहा है कि बर्फ पतली होती जा रही है। इसके पतले होने की दर तेज है। उन्होंने कहा कि आइपीसीसी इसका सही अनुमान नहीं लगा पा रही है। आइपीसीसी ने कहा था कि आर्कटिक में बर्फ 2030 तक रहेगी। हालांकि मास्लोवस्की के मॉडल को विवादित माना जाता है। इसके बावजूद वधाम्स का कहना है कि उनके अनुमान बहुत हद तक सही हैं। आर्कटिक की बर्फ बहुत जल्द शून्य के स्तर पर पहुंच जाएगी।

मोबाइल से हो सकता है ब्रेन ट्यूमर
लंदन, एजेंसी : मोबाइल फोन पर घंटों बात करने वाले सावधान हो जाएं। ब्रिटिश वैज्ञानिकों का दावा है कि यह सेहत के लिए नुकसानदेय हो सकता है। इससे ब्रेन ट्यूमर भी हो सकता है। डेली मेल की रिपोर्ट के मुताबिक मोबाइल फोन इस्तेमाल करने वालों को एक अलग प्रकार का ट्यूमर हो सकता है। इस ट्यूमर को ग्लाइओमा कहते हैं। यह अध्ययन दो सौ से अधिक लोगों पर किया गया। इससे पहले 2008 में स्वीडन में हुए अध्ययन में कहा गया था कि, जो बच्चे मोबाइल फोन का इस्तेमाल करते हैं उनमें ट्यूमर का खतरा पांच गुना ज्यादा होता है। शोधकर्ताओं के मुताबिक मोबाइल के इस्तेमाल का असर व्यक्ति की यौन क्षमता, गर्भावस्था के दौरान इसका उपयोग करने वाली महिलाओं के बच्चों के व्यवहार और मस्तिष्क की कोशिकाओं पर पड़ता है। चैरिंग क्रॉस हॉस्पिटल के न्यूरोसर्जन और प्रमुख शोधकर्ता केविन ओ नेल ने कहा है कि ब्रेन ट्यूमर विकसित होने में काफी समय लगता है। इसलिए इसके दुष्परिणाम तुरंत सामने नहीं आते। अध्ययन में नेल के सहयोगी और ब्रिस्टल विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डेनिस हेनशा ने तो यहां तक कहा है कि सिगरेट के पैकेटों की तरह अब मोबाइल फोन के डिब्बों पर भी नुकसान की चेतावनी दी जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि दुनियाभर में लोग मोबाइल फोन का इस्तेमाल कर रहे हैं। भविष्य में उन्हें ब्रेन ट्यूमर और प्रजनन समेत कई गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। यह एक बहुत गंभीर मसला है। इससे पहले जून में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी मोबाइल फोन का अत्यधिक इस्तेमाल करने वालों को कैंसर के खतरे से सावधान किया था। लोगों को हैंड फ्री इस्तेमाल करने की सलाह दी गई थी। लोगों से कहा गया था कि वे मोबाइल के ज्यादा इस्तेमाल से बचें। इसके अलावा घंटों तक बात करने की जगह बेहतर है वे थोड़ी थोड़ी देर के बाद कॉल करें। एक साथ बात करने से वे ज्यादा परेशानी में फंस सकते हैं।